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क्या हम ऐसे ही है?

अभिनव
अभिनव
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यह लेख जो mai लिख रहा हू यदि कोई कमी रह जाए तो माफ़ करना|
“सभ्य” यह  सब्द ऐसा है जो दो सभ्यताओ, संस्कृति को, काफ़ी अलग करता है| इंसानो को जानवर से अलग करता है|
वैसे इंसान का दिमाग़ ही है जो उसको सबसे अलग करता है और आज जो इतना विकास है सब उसी का कमाल है पर अफ़सोश  यह सभी मे नही आ पाया …पर १००% तो कुछ  होता ही नही है….और कब कहा कैसे जो तोड़ा  बहुत है वह भी कुछ लोगो को नही मालूम | कैसे प्रयोग करे|
मुझे उन लोगो से परेसानी है जो, अपने घर के बाहर भी अपनी बेवकूफी का परिचय देते है.घर वालो तो परेशान होते ही होंगे..बसो मे ,ऑटो मे गंदगी करते रहते है ,,,पान-मसाला खाकर थूकना ..बिना किसी की परवाह किए हुवे ,,किसी को परेसानी हो सकती है .. वैसे तो इतना दिमाग़ तो होना ही चाहिए जो हमारे सुविधा के लिए चीज़े है उनको सही से रखे |
और हा अगर आप ने ग़लती से उनको टोक दिया तो उल्टा आप को ही समझाने लगेंगे ..इन कामो मे ऐसा नही है की कम पढ़े-लिखे लोग सामिल  होते है …हाइली quilified लोग सामिल होते है स्कूल जाने वाले हमारे होनहार युवा भी कुछ सामिल होते है.. यही सीखते है…..या manners सीखना ही नही चाहते है|
mai तो कहता हू बस थोड़ी सी कल्पना करे यदि mai आप के घर आउ और आप के कमरे मे थूकना शुरू तो कैसा लगेगा|
इस का उत्तर क्या होगा आप जानते है? तो घर की तरह ही बसो मे .ऑटो मे,ट्रेन मे, स्कूल मे,ऑफीस मे,सड़को मे ..यह सब आप के लिए ही है और इसकी ज़िम्मेदारी भी हम सबकी है|
तो “सभ्य” सब्द का सही से अपने जीवन मे प्रयोग करे ..केवल कॉलेज जाने, बड़ी-बड़ी बाते करने से कुछ नही होता ..अपने अंदर सभ्यता लाए …और सही तरीका तो यह है कि यदि आप पान मसाला खाते है तो जब आप यात्रा करे तो कुछ समय के लिए तो बंद कर सकते है,और सड़को मे चलते है तो उचित जगह पर थुके …आप ऐसा करेंगे तो और जब कोई जैसा पहले आप करते थे|..करेगा तो किसी को जो समस्या होती है …समझ पाएँगे|

राहुल

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