अभिनव
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अब हर रोज रात ऐसे ही बीतती जाती है,
नही मिल पा रहा रास्ता यहाँ से निकल जाने का,
और रोज ज़िंदगी ऐसे ही परेशानियों में गुजर जाती ,
सोते समय होती है फिकर दिन के कम की,
और दिन की रोशनी रात के ख़याल में बीत जाती है,
नही रहता है ख़याल भी अब अपने आप का,
और दुनिया फिर भी हमें ही मतलबी कह जाती है,
जब होते है दुनिया की महफ़िलों में,कुछ चैन आ जाता है,
और अकेले में तन्हाई फिर दिल में घर कर जाती है,
हर नये दिन का होता था हमें इंतेज़ार,
अब तो हर नयी सुबह नया दुख दे जाती है
बहुत प्यार करते थे हम हमारी नींद से,
पर अब तो वो भी आँखो से दूर चली जाती है,
लफ़जो का जो मोहताज ना हो ऐसा रिश्ता चाहते हैं,
पर किस्मत इस पुकार को सुन कर खामोश हो जाती है,
अब हर रोज रात ऐसे ही बीतती जाती है|
राहुल यादव
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